Tuesday 17 November 2015

THE SILENT NIGHT
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The night is silent dark and deep
Keep me awake far from sleep
Lovely crescent hanging afar
Reigning among the blinking stars

I wade through my turbulent mind
Grope around like a blind
The strings of yesteryear s are broken
And pearls of memoirs are strewn around.

Silhouette of palm tree near window sill
Sways its shadow when in breeze
Rustling of leaves whisper in my ear
The depth of night says 'come my dear'.

A shooting star in the sky above
Ripples my mind and makes me wry
The humble night says I'm here to stay
Till the dawn pushes me away.
                                                                                                          

Monday 2 November 2015

भगवान ने हमें ये अमूल्य जीवन तो प्रदान किया लेकिन इस जीवन को जीने का सलीक़ा  सिखाने के लिये हमें माँ जैसी निश्छल प्रेम करने वाली हस्ती अता की, आज मैं अपनी ब्लॉगिंग का आरंभ माँ पर लिखी एक कविता से करना चाहती हूँ

माँ का बचपन
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झुर्रियों पर हाथ फेरती,
सहसा ख़याल यूँ आया
माँ तूने भी प्यार से अक्सर,
मेरे गाल से दूध पोंछा होगा ॥
मुस्कुराते होंठ तेरे,
अपनों से हैं बेख़बर
प्यार से बाँध लेती सब को,
सहज हँसी और उत्सुक नज़र ॥
असहाय सी तेरी गुहार,
अव्यक्त मन की इहा
वैसे ही जान लेती हूँ,
जैसे माँ समझे बच्चे की पुकार ॥
तेरी सूनी अनकही आँखें,
मन में कसक है ये उठती
आँखों से जो ओझल हूँ मैं,
ऐसे ही तेरी निगाहें खोजतीं ॥
न खाने की ज़िद तेरी 
और बार बार मनाना तेरा
तूने भी ऐसे ही मेरे
हठीले बालपन को  होगा सँवारा ॥
मैं तेरी मजबूर आँखों में,
अपना लड़कपन देख रही हूँ
तेरे जीवन की इस साँझ में
बाँहें पसारे तुझे थाम रही हूँ ॥
ये जीवन तेरी देन है 
तुझ पर ही है न्योछावर
कल थी तू मेरा सहारा
आज मैं तेरी लाठी हूँ ॥
तेरे जीवन की ये ढलती शाम,
तुझे मेरा कोटिश: प्रणाम
भारी मन से सोच रही हूँ
ईश्वर ने क्या खेल रचाया
तू जी रही मेरा बचपन,
और मैं बन गई तेरी छाया
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