Monday 2 November 2015

भगवान ने हमें ये अमूल्य जीवन तो प्रदान किया लेकिन इस जीवन को जीने का सलीक़ा  सिखाने के लिये हमें माँ जैसी निश्छल प्रेम करने वाली हस्ती अता की, आज मैं अपनी ब्लॉगिंग का आरंभ माँ पर लिखी एक कविता से करना चाहती हूँ

माँ का बचपन
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झुर्रियों पर हाथ फेरती,
सहसा ख़याल यूँ आया
माँ तूने भी प्यार से अक्सर,
मेरे गाल से दूध पोंछा होगा ॥
मुस्कुराते होंठ तेरे,
अपनों से हैं बेख़बर
प्यार से बाँध लेती सब को,
सहज हँसी और उत्सुक नज़र ॥
असहाय सी तेरी गुहार,
अव्यक्त मन की इहा
वैसे ही जान लेती हूँ,
जैसे माँ समझे बच्चे की पुकार ॥
तेरी सूनी अनकही आँखें,
मन में कसक है ये उठती
आँखों से जो ओझल हूँ मैं,
ऐसे ही तेरी निगाहें खोजतीं ॥
न खाने की ज़िद तेरी 
और बार बार मनाना तेरा
तूने भी ऐसे ही मेरे
हठीले बालपन को  होगा सँवारा ॥
मैं तेरी मजबूर आँखों में,
अपना लड़कपन देख रही हूँ
तेरे जीवन की इस साँझ में
बाँहें पसारे तुझे थाम रही हूँ ॥
ये जीवन तेरी देन है 
तुझ पर ही है न्योछावर
कल थी तू मेरा सहारा
आज मैं तेरी लाठी हूँ ॥
तेरे जीवन की ये ढलती शाम,
तुझे मेरा कोटिश: प्रणाम
भारी मन से सोच रही हूँ
ईश्वर ने क्या खेल रचाया
तू जी रही मेरा बचपन,
और मैं बन गई तेरी छाया
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3 comments:

  1. ब्लॉग जगत में आप का बहुत बहुत स्वागत है बेला दी
    बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी कविता से ब्लॉग की शुरुआत की है आप ने सदा माँ का आशीर्वाद आप का साया बन कर रहे बस यही दुआ है
    बस आप लिखती रहिये और हम लोग लाभान्वित होते रहें

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  2. स्वागत है बेला दी... बहुत सुन्दर शुरुआत की है आपने. मां की याद को प्रणाम.

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